Wednesday, December 30, 2009

मीडिया जिंदाबाद पर इन्साफ अधुरा है


यह लेख है या फिर कहिये एक अधूरी सी कहानी, ये कहानी है एक १४ साल की मासूम लड़की की है जो एक टेनिस खिलाडी थी , जो शायद आज जिंदा होती पर उसकी मौत हो गयी , कानून के नज़र में वो आत्महत्या थी पर इंसानियत के नज़र में एक क़त्ल था. और गुनाह करनेवाला था पूर्व पुलिस डी जी पि राठौर,एक १४ साल की लड़की के साथ छेड़खानी और बाद में उसी मानसिक प्रताड़ना । जिस पुरुषप्रधान देश में जहा आज भी औरत को दूसरा स्थानं है वहा ये बेचारी अकेली क्या कर लेती ? शायद घरवालो की मानसिक अवस्था न देख पाने के कारण उसने आत्महत्या कर ली। अब सवाल था हमारे प्रशासन और सरकार के रवय्ये का और हुवा भी वही जो हमेशा से ही होता रहा है । १० साल तक केस को दर्ज भी नहीं किया गया पर जब किया गया तो राठौर को बचने के तरीके भी उसमे शामिल थे . केस चलता गया चलता गया और जब इन्साफ (या फिर कहिये उसके नाम पर बलात्कार) हुआ तो ये हमारे सभ्य समाज पर किसी तमाचे से कम नहीं था ।


किसी की जान लेने सजा सिर्फ ६ महीने ? राठौर जीतकर हसते हुए बाहर आया और वो क्यों न हसता ? उसे तो ईसकी ही उम्मीद थी ।

" हम लोग " "हमारा समाज " "हमारा प्रशासन " "हमारी आज़ादी " " हमारी (अ)न्यायप्रणाली" यह सब शब्द मेरे लिए बेकार से साबित हुए जब मैंने रुचिका के पिता को आसू बहाते हुए देखा और तभी मुझे अपने इंसान होने पे शर्म सी आने लगी

हमारी सोच की प्रणाली भी अजीब है , मैं आतंकवाद को गंभीर होकर नहीं देखता क्योंकि मेरा अपना कोई उसमे मारा नहीं गया , मैं किसानो की आत्महत्या को गंभीरता से नहीं लेता क्योंकि मैं किसान नहीं हु , मैं रस्ते में पड़े किसी इंसान की मदद नहीं करता क्योंकि वो मेरा कोई सगा नहीं और में किसी अपाहिज की भी मदद नहीं क्योंकि वो लाचार है मैं नहीं। मेरा हमेशा से ये मानना रहा की हम भारतीय (ज्यादा तर, सभी नहीं ) समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेते क्योंकि वे या उसका कोई अपना उस अनुचित घटना से दूर है .


मैं सरहाना करता हु मीडिया के कार्य की, उन्होंने सारे तंत्र पर दबाव डाला. जहा आज मीडिया, जो शायद मार्केटिंग या टी आर पि के भटकाव में था पर सभी ने अपने अपने ढंग से इसका पीछा किया और के और प्रशासन को मजबूर किया के वे इस नाइंसाफी को फीसे अदालत में रखे इस के साथ साथ मैं रुचिका केस में लड़ने वाले वकील पंकज भारद्वाज की सरहना करता हु के उन्होंने ने इस केस को लढा ।

अब मेरा सवाल हमारी न्याय प्रणाली पर भी है अगर खुदा करे कभी किसी रोज़ अगर जज के बेटी के साथ इस तरह का हादसा हो तो वो क्या इतने साल इंतज़ार करने के बाद गुनहगार को सिर्फ महीनो की सजा देते ? क्यों हम इंसानियत या मानवता को तरजीह नहीं देते? क्यों हर बार हमें जगाने के लिए जोरदार तमाचे की ज़रूरत होती है ? पर पता नहीं जवाब किस से मांगे और कौन देंगा ?

और अंत में ,
प्रिय रूचिका ,
हम क्षमा चाहते है इस सभ्य समाज का हिस्सा होने के लिए जहा कानून की पुरानी किताबे इंसानियत पर हावी होती है , हम क्षमा चाहते है अपने कमज़ोर होने पर, हम इस बात पर भी क्षमा चाहते है हमने नामर्द सरकारों को चुन कर कुर्सी पर बिठाया जो तुम्हे या तुम जैसे अनगिनत मासूमो को इन्साफ ना दिला सकी, हम क्षमा चाहते है क्योंकि हम ना अजमल साब को गोली मार सकते है ना राठौर कोपर एक बात ज़रूर विश्वास देता हु जब भी मेरे आसपास ऐसी घटना होने लगेगी तब "मैं" चुप नहीं रहूँगा .

"मेरा मासूम होना ही मेरे मरने का सबब था,
कातिल तो कातिल था मगर तेरी बेरुखी से भी मौत आती रही।
पर अब वो जो इतने हाथ बढे है मेरी ओर
लगता है मेरा मरना उनके लिए सबक था । "

Wednesday, April 22, 2009

चैनलों की भरमार, सबका बुरा हाल ......

पढ़ पढ़ पोती, कोई पंडित न होवे
जो देखे चार चैनल हर रोज़, तो पंडित होवे.

मुझे यकीं है है आप लोग हैरत में नही पड़ेंगे, और आप अगर हैरत मैं पड़ जाओंगे तो आपके भारतीय होना का शक है।

आज के दौर मैं जहा हर कोई अपना चैनल ला रहा है तो वोह दिन दूर नही जब आपके टीवी पर १००० से ज्यादा न्यूज़ चैनल होंगे जहा पर आप पत्रकारिता धज्जिया उड़ते देंखेंगे।

आप लोग यकीं जानिए जब भी मैं उब जाता हु और मुझे हसना होता है मैं तुंरत इंडिया टीवी चैनल सेट कर देता हु जहा रजत शर्मा और उनके टीम पत्रकारिता की धज्जिया उड़ाते देखे जा सकता है। और लगभग यही हाल हर न्यूज़ चैनल का है (एक्सेप्ट ndtv) ।

पत्रकारिता" केवल काम नही है ये तो एक मिशन है, समाज को जागृत करने का, समाज में बदलाव लाने का. पता नही टी आर पि की भागदौड़ में ये चैनल के पत्रकार या उनके मालिक अपना मकसद पुरा करेंगे या नही।

मैं यहाँ पर विनोद दुवा और उनके साथियों का जिक्र करना चाहूँगा जिन्होंने "पत्रकारिता" का सम्मान किया और रखा है और इसीलिए मेरे जैसे लोगो आस्था इनमे बाकी है। ख़बर के नाम पर कचरा परोसने वालो को ये समझना चाहिए की वे जनता की आँख और कान है, वे लोकतंत्र की नींव है ।


और अंत मैं कुश सम्मानीय टिप्पणिया ............

इंडिया टीवी- पत्रकारिता की तो ऐसी की तैसी...... ।
स्टार न्यूज़- चैन से सोना हो तो स्टार न्यूज़ या उसके प्रोग्राम न देखे .....।
आज तक - ६ सालो से सबसे उम्दा पकाऊ चैनल ।
आय बी एन - ये ख़बर सबसे पहले हमने दिखाई (जो अब तक घटी ही नही) ।
तेज़ - आपके सितारे गर्दिश मैं है .....अंधविशवास बढाओ, टी आर पि घटाओ।
सुदर्शन- ख़बर किसी और की, विडियो किसी और का।
जी टीवी - हमारा मकसद - आय पि एल और बी सी सी आय की बदनामी करते रहना, देश में कुछ भी हो।
सहारा टीवी- यार मिला और न मिला विसाले सनम, न चैनल चला न चलेंगे हम ।




Monday, March 16, 2009

"वरुण बिन लादेन"........ तुम्हे गाँधी कैसे कहू ?

हिंदू भी हु..... मुसलमान भी हु , आखिरकार मैं भी हिंदुस्तान हु,
अब दुनिया जो भी समजे, ना मैं भगवान् हु ना मैं शैतान हु,
गीता भी हु मैं.... मैं कुरान भी हु, ज़रा पढ़ मुझे ऐ नासमझ.. मैं आखिरकार इंसान हु।

वरुण बिन लादेन ने जो कहा है पता नही वो राजनीती का दांव था या उनके अंदर छुपी हुई नफरत। बात कोई भी हो जिस तरह का बयान उनके द्वारा दिया गया वो सही मैं आहत करनेवाला था। न जाने कौनसी किताबे पढ़ी इन लोगों ने और न जाने किस मिटटी के बने हुए है ये लोग ? कैसे लगा लेते है आग ये दो कौमों के बीच मैं ?

"महात्मा गाँधी" मुझे अच्छी तरह से पता है ज्यादातर नौजवान उनके आदर्शो को नही मानते पर कोई भी इस तरह की टिपण्णी नही करता। मैं गर्व से कह सकता हु की मैंने गाँधी को पढ़ा है हो सकता उनके विचारो से हर कोई सहमत न हो पर आप ये सोचिये १८९३ (साउथ अफ्रीका) से लेकर आज़ादी तक गाँधी आवाज़ पर लाखों लोग जमा हो जाते थे क्या वे सब पागल थे ?या इन राजनेताओ की तरह वो पैसे के बल पर भीड़ जमा करते थे ? .....जवाब है "नही"। गाँधी अपने आप मैं एक सेना थे और वरुण ने जिस तरह से बयां दिए है उससे ये साबित होता है की वो किसी दिमागी बीमारी का शिकार है। रहा मुसलमानों की ख़िलाफ़ बयानबाजी करने का अब इस तरह के पैंतरे आम होनेवाले है। अब यह आप और हम पर है की ऐसे सापों को हम कुचलते है या संसद मैं बिठाकर इन्हे दूध पिलाते है ।

वो ना-क़द्र था जज्बातों का, उसे बड़ी बेरुखी अपनों से थी......
उसका क्या कसूर"साजेद", आज़ादी तो उसे विरासत में मिली थी .....


जय हिंद

Sunday, March 8, 2009

इंडिया टुडे

मैंने आज इंडिया टुडे पर जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ का भाषण देखा, एक धूर्त चाल चलने की कोशिश उनके द्वारा की गई पर मौलाना मदनी ने जिस तरह से उन्हें मुह तोड़ जवाब दिया वो सही मायनो में लाजवाब था। मैं उनका शुक्रिया अदा करना चाहूँगा, जिस तरह से उन्होंने मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व किया है उससे पाकिस्तान को मुसलमानों के बारे में जो गलतफहमिया है वो शायद दूर होंगी । मुजे हमेशा से लगता है और सच भी है की आज इस वर्त्तमान समय में भारतीय मुसलमानों की जो दयनीय हालत है उसका सबसे बड़ा जिम्मेदार पाकिस्तान ही है। आज मुसलमानों पर शक किया जाता है वो सिर्फ़ पाकिस्तानी हस्तक्षेप और उनकी फैलाई दहशतगर्दी के कारण।

मैंने भी इस तरह के दर्द से गुजरा था और कभी कभी गुजरता भी हु, जहा मेरा मुस्लमान होना मेरे काम और मेरी कला पर हावी हो जाता है ।गम इस बात का नही की कोई मुझे शक की निगाह से देखता है पर गम तो इस बात का है की मेरे मज़हब को ही लोग शक की निगाह से देखते है। मेरे देशभक्ति पर भी शक इसीलिए होता है की मैं एक मुस्लमान हु । मेरी माँ मेरी हमेश ही मेरी फिक्र करती है क्योंकि ना जाने कब मुझे आतंकवादी बनाकर उठा लिया जाए। और यह सिर्फ़ मेरे साथ नही हो रहा यह हालत तक़रीबन सभी मुस्लिम युवा वर्ग की है । इन सभी का जिम्मेदार पाकिस्तान है । मजहब के नाम पर जो खुनी खेल खेला जा रहा है उसका शिकार न सिर्फ़ शारीरिक है बल्कि उससे ज्यादा मानसीतौर पर लोगशिकार हो रहे है। मैं यह नही कह रहा की सारा पाकिस्तान यह कर रहा पर जो लोग ये सब कर रहे है वो सभी अमनपसंद और आम मुसलमान को परेशां कर रहे है।

अगर कोई दहशतगर्द दिमाग मेरे इस ब्लॉग को पढ़ रहा है तो वो ये समज़ ले , अल्लाह रब्बुल आलमीन है न की रब्बुल मुस्लिमीन है । अगर हमारे प्यारे रसूल (स.) यही सब करना चाहते तो उनके पास अली (.), अबू बकर (।), हजरत बिलाल (।) और ऐसे कितने ही चाहनेवाले थे जो तलवार की नोक पर लोगो में इस्लाम फैला सकते थे पर हमरे रसूल ने हमें ऐसा सिखाया ही नही वो तो इन सभी चीजों के खिलाफ थे ।

मुज्ज्हे हैरानी तो इस बात की है की अमेरिका से भीक मांगकर खाना खानेवालो को अभी तक शर्म नही आई, मुसलमानों की बात करते है और इस्राइल के सबसे बड़े सजिदार से भिक मांगते हो यह कैसे हो रहा है ? ऐसा ही कुछ हाल हमारे मुल्क में भी है, जितना पैसा सुरक्षा के नाम पर खर्च होता है उसका अगर ५० % भी आम गरीबो के लिए खर्च किया जाए तो फिर कभी यहाँ "स्लम ka कुत्ता" जैसी फ़िल्म नही बनेगी ।

और रहा कश्मीर का मुद्दा दोनों मुल्को के सियास्तादान यह नही चाहते के कश्मीर का मसला हल हो अगर वोह हल हो जायेगा तो जनता शायद विकास के बारे में बात करेने लगेंगी जो अभी तक नही के बराबर है। एक रोचक तथ्य ये भी है की जितना कब्जा कश्मीर पर पकिस्तान ने किया उससे थोड़ा कम चीन ने भी कब्जा किया हुआ है पर हमारे लोग सिर्फ़ पाकिस्तान को आँख दिखाते है। मतलब ये कतई ये नही है की पाकिस्तान सही है बल्कि हमारे धरती पर चीन ने भी कब्जा किया है में यह याद दिलाना चाहता हु।

आख़िर कब तक मजहब के नाम पर हिंदोस्ता और पाकिस्ता बाटोंगे,
ज़मीनों तो बट चुकी है अब क्या आसमा भी बाटोंगे ?




Tuesday, March 3, 2009

मेरा देश

भारत एक ऐसा देश जो कभी सोने की चिडिया कहलाता था कुछ महीनो बाद फिर से सोने की खान बन जायेगा क्योकि चुनाव आनेवाला है। मैं हमेशा से हैरान रहा की जिस देश में गरीबी, बेरोजगारी और भूख है वहा इतना सारा पैसा चुनाव में कैसे बह जाता है ? यह हार् सिर्फ़ हमारे लोकतंत्र की नही बल्कि हमारी नज़रान्दाजी का नतीजा है । हम लोग केवल एसी ऑफिस या घरो में बैठकर दुसरो को इस बदहाली का जिम्मेदार मानते है। अब भी वक्त है इस समाज को बदलने का नही तो आनेवाला समय में हमारे इस गलती की सज़ा हमारे आनेवाली पीढी को भुगतनी पड़ेंगी । एक शायर ने कहा है "नज़र बदलो नज़ारे बदल जायंगे" अब भी वक्त है नींद से जागने का नही तो कहना पडेंगा "एक ही उल्लू काफी था बरबादे चमन के लिए, यहाँ तो हार् शाख पैर उल्लू बैठा है सोचे अंदाजे गुलिस्ता क्या होंगा ?

The Terror Attack

Today..... Again Humanity may be feel shy . the terror attack on shrilnakan teem is the unacceptable. I don't know why they are doing this ? Being part of Islam i am confused which holy book & prophet they are following. why they are killing innocent people ?

Religions do not give permission of mindless killing of innocent people, and those who are indulging in such activities have nothing to do with any religion. Nothing can be achieved by making humanity to bleed, and those who swear by the name of political goal are nothing but inhuman and should be treated in a very strong manner. No stone should be left unturned to bring these enemies of humanity to book.

Finally, I want to pay my sincere homage to all those who had lost their lives in this blast. I express my deepest condolences to the family and friends of the victims, and want to assure them that they are not alone, this entire humanity is equally depressed at the loss of lives. Put a brave face against the enemies of humanity and do not let them succeed in their motive of terrorizing us.

Monday, March 2, 2009

MY FIRST ARTICLE

DEAR FRIENDS,
I CREATE THIS BLOG FOR EXPRESSING THE TRUTH, 'THE TRUTH' ABOUT MEDIA, ABOUT PEOPLE, ABOUT IDENTITY, ABOUT ART, ABOUT LOVE, ABOUT HAT, ABOUT EDUCATION........ & LOTS ABOUT.