Monday, March 16, 2009

"वरुण बिन लादेन"........ तुम्हे गाँधी कैसे कहू ?

हिंदू भी हु..... मुसलमान भी हु , आखिरकार मैं भी हिंदुस्तान हु,
अब दुनिया जो भी समजे, ना मैं भगवान् हु ना मैं शैतान हु,
गीता भी हु मैं.... मैं कुरान भी हु, ज़रा पढ़ मुझे ऐ नासमझ.. मैं आखिरकार इंसान हु।

वरुण बिन लादेन ने जो कहा है पता नही वो राजनीती का दांव था या उनके अंदर छुपी हुई नफरत। बात कोई भी हो जिस तरह का बयान उनके द्वारा दिया गया वो सही मैं आहत करनेवाला था। न जाने कौनसी किताबे पढ़ी इन लोगों ने और न जाने किस मिटटी के बने हुए है ये लोग ? कैसे लगा लेते है आग ये दो कौमों के बीच मैं ?

"महात्मा गाँधी" मुझे अच्छी तरह से पता है ज्यादातर नौजवान उनके आदर्शो को नही मानते पर कोई भी इस तरह की टिपण्णी नही करता। मैं गर्व से कह सकता हु की मैंने गाँधी को पढ़ा है हो सकता उनके विचारो से हर कोई सहमत न हो पर आप ये सोचिये १८९३ (साउथ अफ्रीका) से लेकर आज़ादी तक गाँधी आवाज़ पर लाखों लोग जमा हो जाते थे क्या वे सब पागल थे ?या इन राजनेताओ की तरह वो पैसे के बल पर भीड़ जमा करते थे ? .....जवाब है "नही"। गाँधी अपने आप मैं एक सेना थे और वरुण ने जिस तरह से बयां दिए है उससे ये साबित होता है की वो किसी दिमागी बीमारी का शिकार है। रहा मुसलमानों की ख़िलाफ़ बयानबाजी करने का अब इस तरह के पैंतरे आम होनेवाले है। अब यह आप और हम पर है की ऐसे सापों को हम कुचलते है या संसद मैं बिठाकर इन्हे दूध पिलाते है ।

वो ना-क़द्र था जज्बातों का, उसे बड़ी बेरुखी अपनों से थी......
उसका क्या कसूर"साजेद", आज़ादी तो उसे विरासत में मिली थी .....


जय हिंद

3 comments:

  1. people like verun will crash our progress & Most important Humanity. now this is time to kick out all of them

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  2. वरुण के इस ब्यान से आहत हुई भावनाओं को आपने बड़े ही सहज अंदाज से इस लेख में उतारा हैं..वो कहते है न " नौजवानों की मजबूरियां हैं, सोचते कम समझते बहोत हैं।" वरुण भी कुछ ज्यादा ही पढ़े लिखे है फर्क बस इतना है उन्होनें अपनी जिन्दगी में उस पाठ को उतारा हैं जो राजनीति के आकाओं ने इन्हें पढ़ाया है। चुनाव का समय है यानी मीडिया हो या राजनेता सबके लिए 'धंधे' का समय है और मौका है किसी भी तरह से लोगों को अपने पाले में करने का.. चाहे फिर इसकी कीमत कुछ भी हो..जब दंगे होगे तो ये दो मुंहे साप अपने-अपने बिल में होंगे मारे जाएंगे हम और आप.. डेमोक्रेसी के नाम पर ये लोग वो सब करते हैं जिनका इल्ज़ाम बाद में हम पर आता हैं....बार-बार आतंकी हमलों का कारण भी सबसे बड़ा यही है कि जब देखों तब हम आपस में ही लड़ते रहते हैं और ऐसी परिस्थति पैदा करते है ये वरुण और ठाकरे जैसे लोग..जानती हूं इस तरह से लिखने में और नेताओं के भाषण देने में कोई फर्क नहीं है पर कुछ करने के लिए कही से तो शुरुआत होनी चाहिए...हमें मिलकर ही इन सभी का अस्तित्व खत्म करना हैं..सुधी सिद्धार्थ

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